रविवार, 30 अक्तूबर 2011

एक नए अर्थ की तलाश में

जीवन के
पथ पर
धधक रहा हूँ मैं ,
एक नए
अर्थ की
तलाश में
भटक रहा हूँ मैं !
मैं चाहता हूँ
निर्वाण की
भोगवादी
परिभाषा ,
तथागत का
साथ और 
यशोधरा की
पिपाशा !
इसीलिए
शायद
त्रिशंकु बन
आकाश में
लटक रहा हूँ मैं !
एक नए
अर्थ की
तलाश में
भटक रहा हूँ मैं !